विभिन्न धर्मों की परंपराएं और मान्यताएं समाज में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती हैं। चाहे वह हिंदू हों, मुस्लिम हों, या अन्य धर्म के अनुयायी, सभी प्रभु प्रेमी आत्माएं अपने-अपने तरीके से ईश्वर की आराधना करती हैं। इन धर्मों की शिक्षा भले ही अलग प्रतीत हो, लेकिन सभी का उद्देश्य एक ही है—परमात्मा की प्राप्ति और सत्य की खोज।
सर्वोच्च सत्ता का सम्मान
हिंदू और मुस्लिम धर्म की परंपराओं में, भगवान और अल्लाह को सर्वोच्च, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी माना गया है। कबीर साहेब जी के दोहों (Kabir Saheb Ke Dohe in Hindi) के अनुसार, चाहे नाम कोई भी हो, परमेश्वर या ईश्वर केवल एक ही हैं। उनका स्वरूप असीम और अजेय है, और वे हर प्राणी के जीवन का आधार हैं। यह विचारधारा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर को जानने के लिए नामों और स्वरूपों से परे जाना होगा।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, ऐसा ज्ञान विचार।
राम रहीमा एक है, दोउ कहे पसार।।
भावार्थ: कबीर साहेब जी कहते हैं कि राम और रहीम दोनों एक ही हैं, केवल उनके नाम अलग हैं। सच्चाई तो यह है कि नामों के अंतर को छोड़कर हमें उनकी एकता को समझना चाहिए।
अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बंदे।
एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे।।
भावार्थ: कबीर साहेब कहते हैं कि अल्लाह ने एक ही नूर (प्रकाश) से इस सृष्टि की रचना की है और सब एक ही ईश्वर के बंदे हैं। इसीलिए कोई भी ऊँचा या नीचा नहीं है; सब समान हैं।
हिन्दू कहूं तो हूँ नहीं, मुसलमान भी नाही।
गैबी दोनों बीच में, खेलूं दोनों माही।।
हिंदू मूये राम कह, मुसलमान खुदाई।
कबीरा जो दोऊ मूए, कौन कहेगा भाई।।
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।
राम रहीमा एक हैं, ना उनमें है भेद।
जल में कुम्भ कुम्भ में जल है, बाहर भीतर मैद।।
मंदिर तोड़ो मस्जिद तोड़ो, तोड़ो जो कछु होय।
पर दिल कबहूँ ना तोड़ियो, यह भगवान का होय।
हिंदू मुस्लिम दो नहीं भाई, दो कहै सो दोजख (नरक) जाही।
हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य-जैनी और बिश्नोई, एक प्रभू के बच्चे सोई।।
कहता हूं कहि जात हूं, कहा जू मान हमार।
जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटि तुम्हार।।
जो गल काटै और का, अपना रहै कटाय।
साईं के दरबार में, बदला कहीं न जाय॥
हिन्दू के दया नहीं, मेहर तुरक के नाहिं।
कहें कबीर दोनों गये, लख चौरासी माहिं।।
मुस्लिम मारे करद सों, हिन्दू मारे तलवार।
कहें कबीर दोनों मिलि, जैहैं जम के द्वार।।
हिन्दू मुस्लिम दोनों भुलाने, खटपट मांय रिया अटकी।
जोगी जंगम शेख सेवड़ा, लालच मांय रिया भटकी।।
हिन्दू मुआ राम काहे, मुसलमान ख़ुदाय।
कहं कबीर सो जीवता, दोउ के सँंग न जाय।।
पण्डित छोड़ो पातरा, काजी छाँड़ कुरान।
वह तारीख बताय दे, थे न जिमी असमान।।
कैसे हिंदू तुर्क कहाया, सब ही एकै द्वारे आया
कैसे ब्राह्मण कैसे सुदा, एकै हाड चाम तन गुदा
एकै बिन्द एके भग द्वारा, एकै सब घट बोलन हारा
कौम छतीस एक ही जाती, ब्रह्म बीज सब की उतपाती
एकै कुल एकै परिवारा, ब्रह्म बीज का सकल पसारा
ऊँच नीच इस विधि है लोई, कर्म कुकर्म कहावे दोई
गरीब दास जिन नाम पिछान्या, ऊँच नीच पदवी प्रवाना।।
कबीर-अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।1।।
कबीर-राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।2।।
कबीर-कृष्ण करीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।3।।
कबीर-काशी काबा एक है, एकै राम रहीम।
मैदा एक पकवान बहु, बैठि कबीरा जीम।।4।।
कबीर-एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान।
नाम पक्ष नहीं कीजिये, सार तत्व ले जान।।5।।
कबीर-सब काहू का लीजिये, सांचा शब्द निहार।
पक्षपात ना कीजिये, कहै कबीर विचार।।6।।
कबीर-राम कबीरा एक है, दूजा कबहू ना होय।
अंतर टाटी कपट की, तातै दीखे दोय।।7।।
कबीर-राम कबीर एक है, कहन सुनन को दोय।
दो करि सोई जानई, सतगुरु मिला न होय।।8।।
एक ही हाड चाम मल मूता, एक रुदीर एक गुदा।
एक बूंद से सृष्टी बनी है, कौन ब्राम्हण कौन सुदा।।
इस प्रकार कबीर साहेब जी (Kabir Ke Dohe in Hindi) ने हिंदू मुस्लिम सहित सभी धर्मों को एक ईश्वर की भक्ति करते हुए एकता में रहने का संदेश दिया है। कहा है,
कबीरा कुंआ एक हैं,पानी भरैं अनेक।
बर्तन में ही भेद है,पानी सबमें एक॥”
काहे को कीजै पांडे छूत विचार। छूत ही ते उपजा सब संसार ।।
कबिरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।
कबीर साहेब जी के ये दोहे (Kabir Ke Dohe in Hindi) मानव धर्म और एक आदि सनातन धर्म की दिशा में संकेत करती हैं, जहाँ हर कोई एक ही परमात्मा का अंश है और सभी को प्रेम, करुणा, और मानवता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
हिंदू-मुसलमानों को कबीर साहेब जी का दिव्य संदेश
कबीर साहेब जी ने अपने दोहों (Kabir Saheb Ke Dohe in Hindi) के द्वारा सामाजिक एकता को अपने शब्दों और कार्यों के माध्यम से प्रचारित किया। उन्होंने कहा, “यह शरीर हमें ईश्वर को जानने और आत्मा को मुक्त करने के लिए दिया गया है।” यह सरल लेकिन गहन संदेश हर धर्म के अनुयायियों को आत्म-चिंतन और आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करता है।
कबीर साहिब जी स्वयं एक आदर्श उदाहरण थे जो धर्म और जाति के बंधनों से ऊपर उठे। वे न केवल हिंदू और मुस्लिम समुदाय के प्रति सम्मान रखते थे, बल्कि उन्होंने यह भी सिखाया कि दोनों समुदाय एक ही ईश्वर की संतान हैं।
धर्म और जाति के बंधनों से परे सभी धर्मों में समानता का संदेश
कबीर साहेब जी के दोहों (Kabir Saheb Ke Dohe in Hindi) के माध्यम से दिया गया संदेश केवल हिंदू और मुस्लिम तक सीमित नहीं था। उन्होंने मानवता के लिए एक ऐसा मार्ग प्रस्तुत किया जो सभी धर्मों और परंपराओं से परे है। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें यह सिखाते हैं:
1. सच्चाई की खोज: जीवन का उद्देश्य आत्मज्ञान और सत्य की प्राप्ति है।
2. मानवता को अपनाना: धर्म की सीमाओं को पार करते हुए सभी को समान दृष्टि से देखना।
3. समानता और प्रेम: जाति, पंथ, और धर्म से ऊपर उठकर सभी के प्रति प्रेमभाव रखना।
निष्कर्ष
कबीर साहेब जी ने समाज में व्याप्त धार्मिक भेदभाव और सांप्रदायिकता के खिलाफ कई महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं। उनकी वाणियाँ सभी धर्मों के लोगों को एकता और भाईचारे का संदेश देती हैं। कबीर साहेब जी ने किसी धर्म विशेष या संप्रदाय का पक्ष ना लेकर अपने तत्वज्ञान के द्वारा विभिन्न धर्मों में व्याप्त पाखंडवाद एवं अप्रमाणित कर्मकांडों का विरोध किया और पूर्ण परमात्मा के केवल एक मानव धर्म की जानकारी दी। उन्होंने धर्म, जाति या किसी विशेष संप्रदाय की सीमाओं से परे एक मानवता-आधारित धर्म का संदेश दिया। और अपने अंतिम समय में मगहर लीला करके हिंदू-मुस्लिम अनुयायियों में द्वेष खत्म करके भाईचारा कायम किया।
कबीर जी का जीवन और उनकी शिक्षाएं मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि बाहरी भेदभाव, चाहे वह धर्म के नाम पर हो या जाति के आधार पर, हमें ईश्वर से दूर करता है। उन्होंने जो संदेश दिया, वह केवल एक आध्यात्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि एक सामाजिक सुधार का भी प्रतीक है। आज की दुनिया में, जहां धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन गहराते जा रहे हैं, कबीर जी का यह संदेश और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
इसी तरह कबीर साहेब जी के मार्गदर्शन के अनुरूप ही संत रामपाल जी महाराज भी सर्व धर्मों का भेद मिटाते हुए एक मानव धर्म की और मार्गदर्शन कर रहे हैं कि सभी मानव एक खुदा या भगवान की संतान हैं।
संत रामपाल जी महाराज का आध्यात्मिक संदेश देता नारा भी है-
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।।
यदि हम उनके विचारों को आत्मसात करें और उनकी शिक्षाओं का पालन करें, तो एक ऐसा आदर्श समाज बना सकते हैं जो समानता, प्रेम, और भाईचारे पर आधारित हो।